बरगद का पेड़


एकबार ठाकुर रामकृष्ण को निर्विकल्प समाधि लेते हुए नरेन छिपकर देख रहे थे | बाद में नरेन काफ़ी आग्रह करने लगे कि उन्हें भी ठाकुर से निर्विकल्प समाधि सीखना है | यह सुनकर नरेन को लगा कि गुरु होने के नाते ठाकुर ऐसा सुनकर प्रसन्न होंगे और उसे निर्विकल्प समाधि लेने की शिक्षा ज़रूर देंगे | पर ऐसा हुआ नहीं; ठाकुर मायूस हो गये और वहाँ से उठकर चले गये | मायूसी का कारण पूछे जाने पर उन्होंने कहा, "मेरी तमन्ना थी कि नरेन बरगद का पेड़ बनेगा और काईओं को आसरा भी देगा , पर उसे तो ताड़ का ही पेड़ बनना है | "

ठाकुर नरेन को जनता जनार्दन के लिए सेवव्रती होकर काम करने की प्रेरणा दे रहे थे और नरेन को व्यक्तिगत प्रगति की धुन लगी थी | निर्विकल्प समाधि का मंत्र तो है ही उत्तम कोटि का; पर ठाकुर रामकृष्ण को लग रहा था कि सभी भक्त वत्सल अगर समाधि लेने लग जाएँ तो फिर समाज का क्या होगा !

अतः कुछ भक्तों को वैयक्तिक प्रगती की लालसा से ऊपर उठकर शिव सेवा ज्ञान से जीव सेवा में लगना है | तभी समाज को प्रगती की राह पर लाया जा सकेगा | आचार्य विनोबा का मंत्र ही सर्वोदय का था ; प्रार्थना भी सामूहिक ही हो; उसमें भी सबके भावनाओं को भली भाँति पिरोए जाएँ |

" ॐ देहे प्राणे मने सवित्याचे , तेज देवाचे घ्याउन या...... हे प्रभो नेई मज असतान तून सत्याकड़े  " यह बाबा विरचित सर्वधर्म प्रार्थना का धुन मन को पूर्ण कर देता है | उस मंगल प्रभात को हृदय में बाँधकर ही हम आज भी लोक हितार्थ सेवा भाव से बाहर निकलते हैं |

कहते हैं किसी बरगद के पेड़ की एक जड़ काटने का प्रयास अगर हो तो वहाँ कई और जड़ों का संचार विविध दिशाओं में होने लग जाता है | नाशवान विचारक के लिए यह बहुत बड़ी सीख है |  विचार का प्राबल्य इतना हो कि वो तूफान में भी अडिग बना रहे | उसे हिला पाने की मंद बुद्धि किसी के मन में भी न आ सके | बाबा कहते थे प्रशाशित होने से कहीं बेहतर विचार है अगर कोई स्वशाशित और अनुशाशित होने का प्रयास करे | प्रकृति के पास सबके लिए व्यवस्था है ; हम उसे प्राप्त करने का कौशल हासिल करें न कि अपनी माँग रख दें | 

एक बार एक भिक्षु राज पथ पर यह सोचकर खड़ा रहा कि इस पथ से गुजरनेवाला राजाधिराज झोली भर  देता है; और फिर जीवन भर कुछ माँगने की नौबत ही नहीं आती | दिव्य पथ को धूल धुसरित करते हुए राजाधिराज आ तो गये; पर भिक्षु के सामने हाथ पसारकर खड़े हो गये | अब भिक्षु मायूस हो गया और उसी मायूसी में कुछ दाने उस सर्व शक्तिमान की हथेली पर रख दिया ; मायूस होकर घर वापस आया | दिन ढल जाने के बाद उन दानों को छाँटने लगा | उसमें कुछ चमकने वाले कीमती मोतियों का संग्रह भी मिला |

अब उसे अपने किए पर रोना आया | वो तो सबकुछ देने का मन बनाकर फिर उसी राज पथ पर जाकर खड़ा हो गया | राजाधिराज आए और उसी स्थान को धूल धुसरित करते हुए आगे बढ़ गये | उनके मन में इस बात की कल्पना बनी कि यह भिक्षु जो दे सकता था वह तो दे चुका | अब भला इससे मिलकर कौनसा समाधान आनेवाला ! अतः उस सर्व शक्तिमान का रथ उसी दिव्य पथ से होते हुए आगे निकल गया | कभी कभी हम भी भ्रमित हो जाते हैं कि अगर सर्व शक्तिमान हमसे कुछ माँग रहा है तो वो कौनसी वस्तु हो सकती ! उसे भला किस चीज़ की कमी हो गई ! असल में सर्व शक्तिमान को हमारा हार्दिक समर्पण चाहिए, ता कि उसे हमें निखारने का मौका मिले |

बरगद का पेड़

एकबार ठाकुर रामकृष्ण को निर्विकल्प समाधि लेते हुए नरेन छिपकर देख रहे थे | बाद में नरेन काफ़ी आग्रह करने लगे कि उन्हें भी ठाकुर से निर्विकल्प...