फकीरी

 


कभी अपने ही देश के राष्ट्रपति महोदय को कुछ ऐसी पीड़ा होने लगी कि वो ठीक से सो भी नहीं पा रहे थे; अगर सो भी जाते हों तो नींद ही नहीं आ रही थी।  वहाँ से कुछ दूरी पर बसे एक नगर में रहनेवाले एक फ़कीर बाबा के बारे में उन्हें पता चला ।  कभी कभी पढ़े लिखे लोग भी फकीरी पर भरोसा करने लग जाते हैं; और ख़ास करके तब जब अन्य सभी औषधि काम ही न आते हों।  औषधि के भी अपने कुछ नियम, कुछ सीमाएं और कुछ कमियाँ रह ही जाती होगी।  यह एक नैसर्गिक विषय ही समझें जो हर सृजन में कुछ न कुछ कमी छोड़ दिया करते हैं ; और उस कमी से चल पड़ने के लिए हम मजबूर भी हो जाते हैं।

आखिर महोदय को लेकर उनका ख़ास काफिला फ़कीर बाबा के शहर में आ पहुंचा ; उनके पास पहले सन्देश वाहक भेजा गया।  कोई आम व्यक्ति का आना जाना रहता तो अलग बात थी; पर उनके जाने के लिए व्यवस्था कुछ ख़ास ही बन जाती होगी ! आला अधिकारी के साथ कुछ एक हुए सिपाही वर्ग का काफिला पहले जा पहुंचा और फ़कीर बाबा को ही आदेश देने लग गए, "बाबा चलो, तुमसे हमारे राष्ट्रपति महोदय मिलाना चाहते हैं। "  

फ़कीर बाबा थोड़ी देर चुप्पी साधे रहे, और कुछ गड़बड़ी में भी थे , उन्हें मरीजों को देखने के लिए निकलना भी था; बाबा वहां जरूर जाते थे जो उनके पास नहीं आ पाता था ; सिपाही और अधिकारी के हरकतों को देखकर उन्हें ऐसा नहीं लगा कि उनके मालिक चलने फिरने की ताकत खो दिए हैं , वो बोले, "उनके दरबार में एक फ़कीर का क्या काम ! उन्हें जाकर कह दो मैं नहीं आऊंगा। "

संवाद पाकर राष्ट्रपति महोदय समझ गए कि जरूर अधिकारी लोगों ने फ़कीर बाबा के साथ अखर कर बात किया होगा।  अधिकारी हो जाने के बाद लोगों को अंग्रेजियत की हवा लग ही जाती है, और फिर उसी प्रकार सी उड़ान भरने लग जाते हैं; कभी कभी यह भी भूल  जाते हैं कि अपने यहाँ धरती नाम की कोई वस्तु है; और जहां हमें भी अपना शरीर छोड़कर जाना होगा।

मुसीबत का पैमाना कभी कभी लोगों को घुटनों पर लाकर छोड़ देता है; देश की जिम्मेदारी उठानेवाले महाशय के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा था।  फिर उन सन्देश वाहकों को भेजा गया; उन्हें घर पर ही रहने के लिए कहा जाय, राष्ट्रपति महोदय ही उनसे मिलने के लिए आएंगे।  जब तक सन्देश वाहक पहुँच पाते तबतक बाबा निकल चुके थे; दो तीन लोगों को वहीँ रहने के लिए कहा गया।  देर रात बाबा को सन्देश  मिला, पर दूसरा दिन क्या होगा वो दूसरे दिन सबेरे ही तय कर लेंगे।

दूसरे दिन भी बाबा देर से ही वापस आये; आकर देखते हैं कि पूरा काफिला ही उनके मचान के पास डेरा डाल चूका है; पड़ोस के घर से कुर्सियाँ  और मेज लाकर महोदय को बैठने भी दिया गया।  बाबा को देखकर और कोई खड़ा हो या न हो, राष्ट्रपति महोदय जगह छोड़कर खड़े हो गए; और उनको देखकर अन्य सभी लोग भी ताल में ताल मिलाने लगे; कुछ लोगों को मजबूरन ही खड़ा होना पड़ा।  जिस आदमी का रहने खाने, नहाने आदि का कोई ठिकाना ही न रहा होगा, उसके लिए राष्ट्रपति जी जगह छोड़कर खड़ा हो जाएंगे !

इस घटना के लिए कोई भी मानसिक रूप से प्रस्तुत नहीं थे, कुछ देर तक सन्नाटा रहा।  फ़कीर बाबा अपने चबूतरे पर आसीन हो गए और जिन मरीजों दूर बिठाकर रखा गया था, उन्हें एक के बाद एक बुलाने लग गए।  राष्ट्रपति जी को लगा उनका नंबर ही शायद पहले आ जाएगा, ताकि वो जल्दी से जल्दी  जगह छोड़कर अपने डेरे पर जा सकें; पर यह तो बाबा का दरबार था ! फिर उन्हें सबकी पीड़ा समझना है। 

जिनकी तकलीफें ज्यादा थी उन्हें पहले बुलाया जा रहा था।  आखिर महोदय  का नंबर आया, " कहिये, क्या तकलीफ है?"

"तहलीफ!"

"यहाँ हर कोई तकलीफें लेकर ही आता है !"

"हाँ, वैसे मुझे भी तकलीफ तो है।  रात को नींद नहीं आती; काफी दवा बदल बदल के लिया, पर कोई असर नहीं हो रहा है। "

"इंसान को नींद आती है, सुलतान को नहीं।  समझ में आया; या फिर और कुछ बताना होगा ?"

"कोई ताबीज , कोई दवा!"

"पढ़े लिखों को ताबीज आदि देना ही बेवकूफी है ! तुमने इंसान और सुलतान को मिलाकर रख दिया ; तो नींद कैसे आएगी ! रात को जब बिस्तर पर जाते हो तो यह भूल जाया  करो कि तुम इस देश के सुलतान हो, तो फिर नींद आ ही जायेगी। "

हप्ते भर में राष्ट्रपति जी को फ़कीर बाबा के बताये नियम से चलने का फल मिल गया; नींद भी आ गई, सफलता भी मिलने लगी।  दिमाग पर से मानो किसी ने एक परदे को ही खींचकर अलग कर  दिया ।  फकीरी पर पहले से ही उन्हें कुछ विश्वास था, वो और बढ़ता चला गया।  उस शहर में आते ही महोदय बाबा के दरबार में जाते थे।

सांख्य और योग

  गुरु अर्जुन की कठिनाइयों का पहला उत्तर संक्षेप में दे चुके , अब वे दूसरे उत्तर की ओर मुड़ते है और उनके पास से एक   आध्...