संत रविदास दास ( जिन्हें संत रविदास या गुरु रविदास के नाम से भी जाना जाता है), एक प्रमुख भारतीय रहस्यवादी कवि, संत, तत्व विवेचक और समाज सुधारक थे जो 15वीं और 16वीं शताब्दी के दौरान सक्रिय रहे। उनके जीवन और शिक्षाओं ने भारत के धार्मिक और सामाजिक परिमंडल को काफी हद तक प्रभावित किया ; भक्ति आंदोलन को एक रचनात्मक दिशा देने का भी काम किया।
उनके पिता का नाम संतोख़ दास और माता का नाम कलसा देवी था। इनकी पत्नी लोना एवं एक पुत्र विजयदास और बेटी का नाम रविदासिनी रहा। अपने परिवार के भरण पोषण के लिए वो जूता बनाने का काम करते थे, जो उनका पैतृक काम भी रहा ; और इस काम में उनकी निष्ठां, लगन , तत्परता भरपूर रहा । रोजगार की व्यवस्था हो जाने के बाद अपना बाकी बचा हुआ समय साधु-संतों के सत्संग और ईश्वर-भजनों में व्यतीत कर दिया करते ते थे।
परिवार जीवन के आरम्भ में वे अपने पिता के कार्य में सहर्ष हाथ बंटाते थे। बचपन से ही रविदास का साधु-संतों से लगाव रहा ; साधू संगती करने में उन्हें भरपूर आनंद भी मिलता था ; जब भी किसी साधु-संत या फकीर को नंगे पैर देखते तो अक्सर उन्हें नए जूते-चप्पल बनाकर सहज ही दे दिया करते ; काफी तकलीफ होने के बाद भी उनके दान वृत्ति का सिलसिला चलता ही रहा। उनके इस दान वृत्ति के कारण परिजन और पिता उनसे नाराज रहते थे। पर दया भा से ओट प्रोत संत श्री को किसी की परवाह थी ही कहाँ ; परिवार से अलग कर दिए जानेपर भी उनका इस दान करने का सिलसिला चलता ही रहा।
रैदास की ईश्वर भक्ति
रैदास निर्गुण निराकार परमात्मा को मानते थे
उन्होंने परमात्मा के बारे में
अपने दोहे में कहा है –
मन चंगा तो कठौती में
गंगा’
कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक
न पेखा।
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा॥
चारो वेद के करे खंडौती,
जन रैदास करे दंडौती।।
रविदास कहते हैं कि राम, कृष्ण,
करीम, राघव आदि सब एक ही
परमेश्वर के विविध नाम
हैं। वेद, कुरान, पुराण आदि ग्रन्थों में एक ही परमेश्वर
का गुणगान किया गया है। उन्होंने ईश्वर की भक्ति के
लिए सदाचार, परहित-भावना तथा सद्व्यवहार का पालन करना
अत्यावश्यक माना।
रैदास जी के भजन
भजन 1
।। राग रामकली।।
रैदास के पद
अब कैसे छूटे राम रट लागी।
रैदास की साखियाँ
हरि सा हीरा छाड़ि
कै, करै आन की आस
। नर जमपुर जाहिँगे,
सत भाषै रैदास ।। १ ।
संत रविदास के दोहे
कबीरा खड़ा बाजार में, मांगे सबकी खैर।
अर्थ:– कबीर बाजार में खड़ा होकर सभी से ख़ैरात मांगता
है। उनकी दोस्ती किसी से नहीं और
नफरत भी किसी से
नहीं। इस दोहे में
संत रविदास जी एक सामाजिक
संदेश देते हैं कि वे सभी
व्यक्तियों को समान रूप
से प्रेम और करूणा से
देखते हैं। इससे मानवता और समरसता को
प्रोत्साहित किया जाता है।
रविदास चारी राह समझावना, कामना मन विचारी।
एक राम, एक रहीम, बिप्र
में सम दृढहिं भयंकर।
बिन धरती के सब खजाने,
बिना राज महल के महाने।
“बिनु प्रेम बिनु प्रीति बिनु गुरु बिनु ग्यान न होई।”
जो दिन दिन जाने सोइ, रत्न खटिक ते मूरति मोहि।
“सबै लोक माया मोहित, मोहिं काहूं देखन न आवै।”
संत रविदास के विचार
“सब कहत हैं मैं बदली, बदली होऊं ना कोई। जो
मैं होऊं अब तुम सोई,
इस काया में समाई।”
संत रविदास जी के अनमोल
वचन
संत रविदास के कुछ प्रसिद्ध
अनमोल वचन इस प्रकार है
–
संत रविदास के सामाजिक कार्य
रविदास
ने अपना जीवन समाज सेवा और दलितों के
उत्थान के लिए समर्पित
कर दिया। उनकी शिक्षाएँ करुणा, प्रेम और निस्वार्थता पर
केंद्रित थीं, जो जीवन के
सभी क्षेत्रों के लोगों को
एकता और सद्भाव अपनाने
के लिए प्रेरित करती थीं।
मुगल सम्राट बाबर के शासनकाल के
दौरान, संत रविदास की शिक्षाएँ भारतीय
उपमहाद्वीप से बाहर भी
फैलने लगी थी। बाबर, एक विजेता और
विविध साम्राज्य वाला शासक था।
किंतु वह विभिन्न आध्यात्मिक दर्शनों के लिए खुला होने के लिए भी जाना जाता था। ऐसा माना जाता है कि बाबर के रविदास के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध थेे और वह आध्यात्मिकता और सामाजिक समानता पर उनकी प्रबुद्ध शिक्षाओं के कारण वह उन्हें बहुत सम्मान देता था।
गुरु रविदास को समर्पित रविदास
स्मारक, उनके अनुयायियों के लिए एक
महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। यह काशी में
स्थित है, जिसे वाराणसी के नाम से
भी जाना जाता है, वह शहर जहां
उन्होंने अपने जीवन का एक बड़ा
हिस्सा बिताया था।
संत रविदास की मृत्यु कब
और कैसे हुई? इस बात को
लेकर भी लोगों में
मतभेद है पर ऐसा
माना जाता है कि उनकी
मृत्यु वाराणसी में 120 वर्ष में हुई थी। कुछ लोग मानते हैं कि वे 142 वर्ष
की आयु तक जीवित रहे।
जैसे-जैसे हम उनकी स्मृति का सम्मान करते हैं और उनके आदर्शों को मूर्त रूप देने का प्रयास करते हैं, हम सभी के लिए अधिक दयालु, समावेशी और सामंजस्यपूर्ण समाज के निर्माण की दिशा में आगे बढ़ते हैं।
Ans : संत रविदास एक श्रद्धेय मध्यकालीन भारतीय रहस्यवादी कवि, संत और समाज सुधारक थे, जिनके बारे में माना जाता है कि वे 15वीं और 16वीं शताब्दी के दौरान जीवित रहे थे। वह अछूत (दलित) समुदाय से थे और भक्ति आंदोलन में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में पहचाने जाते हैं।
Q : संत रविदास ने कहाँ से ज्ञान प्राप्त किया था?
Ans : रैदास ने साधु-सन्तों की संगति से पर्याप्त व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त किया था। संत रामानन्द के शिष्य बनकर उन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान अर्जित किया।
Q : संत रविदास ने बाद की पीढ़ियों को कैसे प्रभावित किया?
Ans : संत रविदास की शिक्षा आज भी समाज की पीढ़ियों को प्रेरित करती रही है। सभी प्राणियों के प्रति समानता और प्रेम का उनका संदेश क्षेत्रीय और धार्मिक सीमाओं से परे था। उनकी शिक्षाओं ने सामाजिक अन्याय और भेदभाव के खिलाफ व्यापक आंदोलन में योगदान दिया।
Q : रविदास के काव्य के प्रमुख विषय क्या है?
Q : रविदास की वाणी भक्ति की सच्ची भावना, समाज के व्यापक हित की कामना तथा मानव प्रेम से ओत-प्रोत होती थी। इसलिए उसका श्रोताओं के मन पर गहरा प्रभाव पड़ता था।
Ans : माघ मास की पूर्णिमा को जब रविदास जी ने जन्म लिया वह रविवार का दिन था जिसके कारण इनका नाम रविदास रखा गया।
Q : संत रविदास की शिक्षाएँ क्या थी?
Ans : संत रविदास ने सार्वभौमिक प्रेम, समानता और करुणा का संदेश दिया। उन्होंने जाति-आधारित भेदभाव को समाप्त करने की वकालत की। उनकी शिक्षाओं ने जाति और पंथ की बाधाओं से परे, आंतरिक शुद्धता और सभी प्राणियों की एकता के महत्व पर जोर दिया।
Q : संत रविदास ने समाज पर कैसे प्रभाव डाला?
Ans : संत रविदास की शिक्षाओं का उनके समय के सामाजिक ताने-बाने पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। उन्होंने प्रचलित जाति-आधारित भेदभाव को चुनौती दी और सामाजिक सद्भाव और समावेशिता की वकालत की। उनका संदेश विभिन्न जातियों के लोगों के बीच आज भी गूंजता रहा है। उन्होंने आध्यात्मिक जागृति और सामाजिक सुधार के लिए लोगों को एकजुट होने के लिए प्रोत्साहित किया।
Q : संत रविदास की शिक्षाएँ क्या है?
Ans : संत रविदास की शिक्षाएँ मुख्य रूप से उनकी भक्ति कविता और छंदों में संरक्षित हैं। ये रचनाएँ पीढ़ियों से चली आ रही हैं, और उनकी कई रचनाएँ भक्ति काव्य के संकलनों और संकलनों में पाई जाती हैं।
Q : संत रविदास कितने वर्ष तक जीवित रहे?
Ans : 120 वर्ष
Q : रविदास के आराध्य देव कौन थे?
Ans : रविदास कहते हैं कि राघव, रहीम, केशव, कृष्ण, करीम आदि में प्रभु राम का ही रूप झलकता है। वही प्रभु राम उनका आराध्य हैं।
Ans : संत रविदास का दर्शन समसामयिक समय में भी प्रासंगिक है और समानता, करुणा और सामाजिक न्याय के मूल्यों को बढ़ावा देता है। उनकी शिक्षाएँ समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने में प्रेम और आध्यात्मिकता की स्थायी शक्ति की याद दिलाती हैं।
Q : संत रविदास का साहित्य में क्या योगदान था?
Ans : संत रविदास ने अपने आध्यात्मिक विचारों को भक्ति काव्य के माध्यम से व्यक्त किया, जिसे “भक्ति काव्य” के नाम से जाना जाता है। उनके छंद, भक्ति साहित्यिक का एक अभिन्न अंग माना जाता है। उनकी कविताएँ गहन ज्ञान और आध्यात्मिकता की गहरी समझ व्यक्त करती है।
Ans : संत रविदास जयंती, संत रविदास की जयंती के सम्मान में एक वार्षिक उत्सव मनाया जाता है। इसे उनके अनुयायी और प्रशंसक बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाते हैं। इस दिन को विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों द्वारा चिह्नित किया जाता है, जिसमें प्रार्थना सभाएं, उनकी कविता का पाठ और धर्मार्थ कार्यक्रम शामिल हैं।