संत रैदास

संत रविदास दास ( जिन्हें संत रविदास या गुरु रविदास के नाम से भी जाना जाता है), एक प्रमुख भारतीय रहस्यवादी कवि, संत, तत्व विवेचक  और समाज सुधारक थे जो 15वीं और 16वीं शताब्दी के दौरान सक्रिय रहे। उनके जीवन और शिक्षाओं ने भारत के धार्मिक और सामाजिक परिमंडल को काफी हद तक प्रभावित किया ; भक्ति आंदोलन को एक रचनात्मक दिशा देने का भी काम किया। 

 इनका जन्म 1377 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी में हुआ ऐसा कुछ लोगों का मत है।  कइयों का मत है कि उनका जन्म  लगभग 1398 . में, अन्य सम्प्रदायों का मत है कि उनका जन्म माघ मास की पूर्णिमा के दिन संवत् 1433 को हुआ।

उनके पिता का नाम संतोख़ दास और माता का नाम कलसा देवी था। इनकी पत्नी लोना एवं एक पुत्र विजयदास और बेटी का नाम रविदासिनी रहा।  अपने परिवार के भरण पोषण के लिए वो जूता बनाने का काम करते थे, जो उनका पैतृक काम भी रहा ; और इस काम में उनकी निष्ठां, लगन , तत्परता भरपूर रहा रोजगार की व्यवस्था हो जाने के बाद  अपना बाकी बचा हुआ समय साधु-संतों के सत्संग और ईश्वर-भजनों में व्यतीत कर दिया करते ते थे।

परिवार जीवन के आरम्भ में वे अपने पिता के कार्य में सहर्ष हाथ बंटाते थे। बचपन से ही रविदास का साधु-संतों से लगाव रहा ; साधू संगती करने में उन्हें भरपूर आनंद भी मिलता था ; जब भी किसी साधु-संत या फकीर को नंगे पैर देखते तो अक्सर उन्हें नए जूते-चप्पल बनाकर सहज ही दे दिया करते ; काफी तकलीफ होने के बाद भी उनके दान वृत्ति का सिलसिला चलता ही रहा।  उनके इस दान वृत्ति के कारण परिजन और  पिता उनसे नाराज रहते थे। पर दया भा से ओट प्रोत संत श्री को किसी की परवाह थी ही कहाँ ; परिवार से अलग कर दिए जानेपर भी उनका इस दान करने का सिलसिला चलता ही रहा। 


रैदास की ईश्वर भक्ति

रैदास निर्गुण निराकार परमात्मा को मानते थे उन्होंने परमात्मा के बारे में अपने दोहे में कहा है

 

मन चंगा तो कठौती में गंगा

 

कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक पेखा।

 

वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा॥

 

चारो वेद के करे खंडौती, जन रैदास करे दंडौती।।

 

रविदास कहते हैं कि राम, कृष्ण, करीम, राघव आदि सब एक ही परमेश्वर के विविध नाम हैं। वेद, कुरान, पुराण आदि ग्रन्थों में एक ही परमेश्वर का गुणगान किया गया है। उन्होंने ईश्वर की भक्ति के लिए सदाचार, परहित-भावना तथा सद्व्यवहार का पालन करना अत्यावश्यक माना।

 अर्थ- इस कहावत के जरिए एक बार फिर रविदास जी मन की पवित्रता पर जोर देते हैं। रविदास कहते हैं, जिस व्यक्ति का मन पवित्र होता है, उसके बुलाने पर मां गंगा एक कठौती में भी जाती हैं।

 

रैदास जी के भजन

भजन 1

 राम जन हूँ उंन भगत कहाऊँ, सेवा करौं दासा।

 गुनी जोग जग्य कछू जांनूं, ताथैं रहूँ उदासा।। टेक।।

 भगत हूँ वाँ तौ चढ़ै बड़ाई। जोग करौं जग मांनैं।

 गुणी हूँ वांथैं गुणीं जन कहैं, गुणी आप कूँ जांनैं।।१।।

 ना मैं ममिता मोह महियाँ, सब जांहि बिलाई।

 दोजग भिस्त दोऊ समि करि जांनूँ, दहु वां थैं तरक है भाई।।२।।

 मै तैं ममिता देखि सकल जग, मैं तैं मूल गँवाई।

 जब मन ममिता एक एक मन, तब हीं एक है भाई।।३।।

 कृश्न करीम रांम हरि राधौ, जब लग एक एक नहीं पेख्या।

 बेद कतेब कुरांन पुरांननि, सहजि एक नहीं देख्या।।४।।

 जोई जोई करि पूजिये, सोई सोई काची, सहजि भाव सति होई।

 कहै रैदास मैं ताही कूँ पूजौं, जाकै गाँव ठाँव नांम नहीं कोई।।५।।

 

।। राग रामकली।।

 भजन 2

 प्रभु जी तुम संगति सरन तिहारी।जग-जीवन राम मुरारी॥

 गली-गली को जल बहि आयो, सुरसरि जाय समायो।

 संगति के परताप महातम, नाम गंगोदक पायो॥

 स्वाति बूँद बरसे फनि ऊपर, सोई विष होइ जाई।

 ओही बूँद कै मोती निपजै, संगति की अधिकाई॥

 तुम चंदन हम रेंड बापुरे, निकट तुम्हारे आसा।

 संगति के परताप महातम, आवै बास सुबासा॥

 जाति भी ओछी, करम भी ओछा, ओछा कसब हमारा।

 नीचे से प्रभु ऊँच कियो है, कहिरैदास चमारा॥

 

रैदास के पद

अब कैसे छूटे राम रट लागी।

 प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अंग-अंग बांस समानी।।

 प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा।।

 प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती।।

 प्रभु जी, तुम मोती हम धागा, जैसे सोनहिं मिलत सोहागा।।

 प्रभु जी, तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करे रैदासा।।

 

रैदास की साखियाँ

हरि सा हीरा छाड़ि कै, करै आन की आस नर जमपुर जाहिँगे, सत भाषै रैदास ।।

 अंतरगति रार्चे नहीं, बाहर कथै उदास

 ते नर जम पुर जाहिँगे, सत भाषै रैदास ।। ।।

 रैदास कहें जाके ह्रदै, रहै रैन दिन राम सो भगता भगवंत सम, क्रोध ब्यापै काम ।।

 जा देखे घिन उपजै, नरक कुंड में बास

 प्रेम भगति सों उधरे, प्रगट जन रैदास।। 4

 रैदास तूं कावँच फली, तुझे छीपै कोइ

 तैं निज नावँ जानिया, भला कहाँ ते होइ ।। ।।

 रैदास राति सोइये, दिवस करिये स्वाद अह-निसि हरिजी सुमिरिये, छाड़ि सकल प्रतिवाद ।। ।।

 

संत रविदास के दोहे

कबीरा खड़ा बाजार में, मांगे सबकी खैर।

 ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर।।

 

अर्थ:– कबीर बाजार में खड़ा होकर सभी से ख़ैरात मांगता है। उनकी दोस्ती किसी से नहीं और नफरत भी किसी से नहीं। इस दोहे में संत रविदास जी एक सामाजिक संदेश देते हैं कि वे सभी व्यक्तियों को समान रूप से प्रेम और करूणा से देखते हैं। इससे मानवता और समरसता को प्रोत्साहित किया जाता है।

 

रविदास चारी राह समझावना, कामना मन विचारी।

 अर्थ:– इस दोहे में संत रविदास कह रहे हैं कि हमें अच्छी और नेक चार राहें समझानी चाहिएधर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष की प्राप्ति के लिए मन को नियंत्रित करना चाहिए। भगवान की भक्ति, ईमानदारी से अर्थ करना, संतुष्टि से काम करना, और मोक्ष की प्राप्ति के लिए समर्पण से जीना चाहिए।

 

एक राम, एक रहीम, बिप्र में सम दृढहिं भयंकर।

 अर्थ:– एक राम, एक रहीम, सभी ब्राह्मणों में समान और दृढ़ हैं। यह दोहा संत रविदास जी के द्वारा सभी लोगों के साथ विद्वेष नहीं करने के लिए लिखा गया है। वे कहते हैं कि सभी भगवान के बच्चे हैं और उन्हें समान दृढ़ता से नहीं देखना चाहिए। इससे सामाजिक एकता को समझाया जाता है।

 

बिन धरती के सब खजाने, बिना राज महल के महाने।

 अर्थ:– इस दोहे में संत रविदास कह रहे हैं कि सच्चे धन के मूल्य को समझने के लिए भूमि के सभी धनियों को छोड़ देना और संप्रभुता के बड़े महल को भी त्याग देना होता है। वास्तविक धन और धरोहर के माध्यम से भलाई की प्राप्ति होती है।

 

बिनु प्रेम बिनु प्रीति बिनु गुरु बिनु ग्यान होई।

 अर्थ:– इस दोहे में रविदास बता रहे हैं कि प्रेम, प्रीति, गुरु का आशीर्वाद और ज्ञान के बिना कोई भी सम्पूर्ण व्यक्ति नहीं हो सकता है। इन तत्वों के साथ जीवन में आनंद, समृद्धि, और आत्मिक सम्पन्नता प्राप्त होती है।

 

जो दिन दिन जाने सोइ, रत्न खटिक ते मूरति मोहि।

 अर्थ:– ये दिन बदलकर भी वे सम्माननीय हैं, जो रत्नखटिक (सोनार) जाति के हैं, वे मेरी मूर्तियों में भी मोहनी हैं। यह दोहा संत रविदास जी के द्वारा सोनार समुदाय के सम्मान को बताने के लिए लिखा गया है। यह दोहा सामाजिक अधिकार और समानता को प्रोत्साहित करता है।

 

सबै लोक माया मोहित, मोहिं काहूं देखन आवै।

 अर्थ:– रविदास यहां कह रहे हैं कि सभी मनुष्य मोह में फंसे हैं और उन्हें किसी भी प्रकार का दिव्य अनुभव नहीं होता है। इसलिए, भगवान का दर्शन करने के लिए मन को मोह और विक्षेप से परे रखना आवश्यक है।

 

संत रविदास के विचार

सब कहत हैं मैं बदली, बदली होऊं ना कोई। जो मैं होऊं अब तुम सोई, इस काया में समाई।

 अर्थ:– व्यक्ति के भीतर बदलाव करना महत्वपूर्ण है और अपने आत्मविश्वास में स्थिर रहना जरूरी है। संत रविदास के विचार धर्म, समाज और विश्वास के मामूले मुद्दों के प्रति एक सकारात्मक दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करते हैं।

 

संत रविदास जी के अनमोल वचन

संत रविदास के कुछ प्रसिद्ध अनमोल वचन इस प्रकार है

 सतगुरु के शरण में जाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

 धर्म करने से नहीं, धर्म में रहने से मोक्ष होता है।

 मनुष्य की दशा विचारों से बदल जाती है।

 बुराई को छोड़ो, भलाई को अपनाओ।

 कर्म कर, फल की इच्छा मत कर।

 आपस में भेद नहीं, सबको समान समझो।

 जो मन करे, सो धन्य हुआ।

 सबको संभालो, सबका भला होगा।

 

संत रविदास के सामाजिक कार्य

 रविदास ने अपना जीवन समाज सेवा और दलितों के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया। उनकी शिक्षाएँ करुणा, प्रेम और निस्वार्थता पर केंद्रित थीं, जो जीवन के सभी क्षेत्रों के लोगों को एकता और सद्भाव अपनाने के लिए प्रेरित करती थीं।

 संत रविदास ने जाति व्यवस्था से पीड़ित लोगों के अधिकारों और सम्मान की वकालत करते हुए सामाजिक असमानताओं और भेदभाव को मिटाने के लिए सक्रिय रूप से काम किया। रविदास के सामाजिक न्याय और समानता के संदेश ने हाशिए पर रहने वाले समुदायों पर गहरा प्रभाव डाला, उन्हें आवाज दी और सशक्तिकरण की भावना पैदा की।

 रविदास और मुगल सम्राट बाबर के बारे में

मुगल सम्राट बाबर के शासनकाल के दौरान, संत रविदास की शिक्षाएँ भारतीय उपमहाद्वीप से बाहर भी फैलने लगी थी। बाबर, एक विजेता और विविध साम्राज्य वाला शासक था।

किंतु वह विभिन्न आध्यात्मिक दर्शनों के लिए खुला होने के लिए भी जाना जाता था। ऐसा माना जाता है कि बाबर के रविदास के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध थेे और वह आध्यात्मिकता और सामाजिक समानता पर उनकी प्रबुद्ध शिक्षाओं के कारण वह उन्हें बहुत सम्मान देता था।

 रविदास स्मारक कहाँ है?

गुरु रविदास को समर्पित रविदास स्मारक, उनके अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। यह काशी में स्थित है, जिसे वाराणसी के नाम से भी जाना जाता है, वह शहर जहां उन्होंने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा बिताया था।

 यह स्मारक समाज में संत के योगदान के प्रति श्रद्धा और सम्मान का प्रतीक है। जीवन के सभी क्षेत्रों से लोग स्मारक पर श्रद्धांजलि अर्पित करने और आध्यात्मिक सांत्वना पाने के लिए आते हैं।

 संत रविदास की मृत्यु कैसे हुई

संत रविदास की मृत्यु कब और कैसे हुई? इस बात को लेकर भी लोगों में मतभेद है पर ऐसा माना जाता है कि उनकी मृत्यु वाराणसी में 120 वर्ष में हुई थी। कुछ लोग मानते हैं कि वे 142 वर्ष की आयु तक जीवित रहे।

 रविदास दास का जीवन और विरासत पीढ़ी-दर-पीढ़ी लोगों के बीच आज भी गूंजती रहती है। आध्यात्मिकता, समानता और सामाजिक न्याय पर उनकी गहन शिक्षाओं ने समय और सीमाओं को पार कर भारत के सांस्कृतिक और धार्मिक परिदृश्य पर एक अमिट छाप छोड़ी है।

जैसे-जैसे हम उनकी स्मृति का सम्मान करते हैं और उनके आदर्शों को मूर्त रूप देने का प्रयास करते हैं, हम सभी के लिए अधिक दयालु, समावेशी और सामंजस्यपूर्ण समाज के निर्माण की दिशा में आगे बढ़ते हैं।

 Q: संत रविदास कौन थे?

Ans : संत रविदास एक श्रद्धेय मध्यकालीन भारतीय रहस्यवादी कवि, संत और समाज सुधारक थे, जिनके बारे में माना जाता है कि वे 15वीं और 16वीं शताब्दी के दौरान जीवित रहे थे। वह अछूत (दलित) समुदाय से थे और भक्ति आंदोलन में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में पहचाने जाते हैं।

Q : संत रविदास ने कहाँ से ज्ञान प्राप्त किया था?

Ans : रैदास ने साधु-सन्तों की संगति से पर्याप्त व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त किया था। संत रामानन्द के शिष्य बनकर उन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान अर्जित किया।

Q : संत रविदास ने बाद की पीढ़ियों को कैसे प्रभावित किया?

Ans : संत रविदास की शिक्षा आज भी समाज की पीढ़ियों को प्रेरित करती रही है। सभी प्राणियों के प्रति समानता और प्रेम का उनका संदेश क्षेत्रीय और धार्मिक सीमाओं से परे था। उनकी शिक्षाओं ने सामाजिक अन्याय और भेदभाव के खिलाफ व्यापक आंदोलन में योगदान दिया।

Q : रविदास के काव्य के प्रमुख विषय क्या है?

Q : रविदास की वाणी भक्ति की सच्ची भावना, समाज के व्यापक हित की कामना तथा मानव प्रेम से ओत-प्रोत होती थी। इसलिए उसका श्रोताओं के मन पर गहरा प्रभाव पड़ता था।

 Q : रविदास का नाम रविदास क्यों पड़ा?

Ans : माघ मास की पूर्णिमा को जब रविदास जी ने जन्म लिया वह रविवार का दिन था जिसके कारण इनका नाम रविदास रखा गया।

Q : संत रविदास की शिक्षाएँ क्या थी?

Ans : संत रविदास ने सार्वभौमिक प्रेम, समानता और करुणा का संदेश दिया। उन्होंने जाति-आधारित भेदभाव को समाप्त करने की वकालत की। उनकी शिक्षाओं ने जाति और पंथ की बाधाओं से परे, आंतरिक शुद्धता और सभी प्राणियों की एकता के महत्व पर जोर दिया।

Q : संत रविदास ने समाज पर कैसे प्रभाव डाला?

Ans : संत रविदास की शिक्षाओं का उनके समय के सामाजिक ताने-बाने पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। उन्होंने प्रचलित जाति-आधारित भेदभाव को चुनौती दी और सामाजिक सद्भाव और समावेशिता की वकालत की। उनका संदेश विभिन्न जातियों के लोगों के बीच आज भी गूंजता रहा है। उन्होंने आध्यात्मिक जागृति और सामाजिक सुधार के लिए लोगों को एकजुट होने के लिए प्रोत्साहित किया।

Q : संत रविदास की शिक्षाएँ क्या है?

Ans : संत रविदास की शिक्षाएँ मुख्य रूप से उनकी भक्ति कविता और छंदों में संरक्षित हैं। ये रचनाएँ पीढ़ियों से चली रही हैं, और उनकी कई रचनाएँ भक्ति काव्य के संकलनों और संकलनों में पाई जाती हैं।

Q : संत रविदास कितने वर्ष तक जीवित रहे?

Ans : 120 वर्ष

Q : रविदास के आराध्य देव कौन थे?

Ans : रविदास कहते हैं कि राघव, रहीम, केशव, कृष्ण, करीम आदि में प्रभु राम का ही रूप झलकता है। वही प्रभु राम उनका आराध्य हैं।

 Q : संत रविदास के दर्शन का अमिट प्रभाव क्या है?

Ans : संत रविदास का दर्शन समसामयिक समय में भी प्रासंगिक है और समानता, करुणा और सामाजिक न्याय के मूल्यों को बढ़ावा देता है। उनकी शिक्षाएँ समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने में प्रेम और आध्यात्मिकता की स्थायी शक्ति की याद दिलाती हैं।

Q : संत रविदास का साहित्य में क्या योगदान था?

Ans : संत रविदास ने अपने आध्यात्मिक विचारों को भक्ति काव्य के माध्यम से व्यक्त किया, जिसेभक्ति काव्यके नाम से जाना जाता है। उनके छंद, भक्ति साहित्यिक का एक अभिन्न अंग माना जाता है। उनकी कविताएँ गहन ज्ञान और आध्यात्मिकता की गहरी समझ व्यक्त करती है।

 Q : संत रविदास जयंती का क्या महत्व है?

Ans : संत रविदास जयंती, संत रविदास की जयंती के सम्मान में एक वार्षिक उत्सव मनाया जाता है। इसे उनके अनुयायी और प्रशंसक बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाते हैं। इस दिन को विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों द्वारा चिह्नित किया जाता है, जिसमें प्रार्थना सभाएं, उनकी कविता का पाठ और धर्मार्थ कार्यक्रम शामिल हैं।

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