पगडण्डी

 

आज भवेश की दूकान पर एक चर्चा चल रही थी।  बात थी ही कुछ निराली।  एक बार एक सपेरा कुछ नए नाग देवता को झोले में बांधकर एक बस पर सवार हो गया।  उसने कई नाग देवता को रानीबांध के जंगल से पकड़ कर ला रहा था।  थैलों का मुंह बाँधा तो गया था और फिर उसे गमछी में लपेटकर बस के सीट के नीचे रख दिया गया। 

हर प्रकार का बंधन सदा के लिए रह जाता होगा ऐसी भी बात नहीं; या फिर हम प्रत्येक बार प्रकृति के नियम से चलनेवाले तत्वों को बाँध लें और खेल दिखाने लग जाएँ यह भी हर बार सफल नहीं भी हो सकता।  ही हम यह दावे के साथ कह सकेंगे कि प्रकृति के नियम से चलनेवालों को हम प्रत्येक बार बाँध सकें और अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करने में सफल होते रहे! फिर भी मनुष्य कुछ हद तक नैसर्गिक तत्वों पर हाथ फेरते रहता आया और आगे भी ऐसा ही करते रहेगा।  धीरे धीरे सवारी से बस भरने लगा और फिर रास्ता खराब होने के कारण बस हिल दुलकर चलने लगा।  कुछ भी हो नाग देवता जहाँ रखे गए थे उसमें से एक झोले का बंधन खुल जाने के कारण उन्हें दिशा मिली; पर सीट के नीचे का नजारा देखते ही उनकी घबराहट भी बढ़ी ; पेड़ , पौधे, खेत, रेत, पत्थर आदि के स्थान पर जूते, चप्पल, झोले, पेटियां और लोगों के पैर ! काट खाने के लिए  खजाने ही समझें ! पर नाग देवता का जन्म किसी को काट खाने के लिए कहाँ हुआ होगा! लखिंदर को भी काट खाने का फरमान कहीं से उनके पास भेजा ही गया होगा; भोले भंडारी के साथ तो उनका रिश्ता ही कुछ और समझें ! कुल मिलाकर जैसा माहौल बना उसके कारण नाग देवता घबराकर सीट के किनारे किनारे घूमने लगे और कुछ ऐसी जगह की तलाश भी करने लगे जहां से लोहे के हाथी से बाहर आने का रास्ता मिले।  आखिर एक पड़ाव पर नाग देवता ने सवारियों को दरवाजे से चढ़ते - उतरते देखा।  फिर और क्या कहना, वहीँ से उतरा जाय!

"अरे बाप….!!! " , कहकर चार गज पीछे हटकर खलासी और दरोगा जी हटे; बाकी लोगों में खबर फैली, फिर और क्या कहना;  चारों तरफ भगदड़ मची।  मालकियत की बात चली ; आखिर कालिंदी बूढ़ा को नीचे उतारा गया।  नाग देवता तो मस्ती की चाल में थे।

"और भी है! सबको निकालो ! जल्दी खाली करो….. " , खलासी महोदय कालिंदी का झोला हाथ देने से भी डर रहे थे।  रोने - धोने का तो सिलसिला ही चल पड़ा।  कई ओर से पारायण की धुन भी आने लगी।  अपने अपने देवता को याद करने में सब जुट गए।  एक नन्हें श्रीमान कहने लगे, "कहाँ! किधर! मुझे दिखाओ ! ….."

अब कौन किसको दिखाए! बस में सवार पढ़े लिखों के बीच कानून की किताब ही खुल गई।  सबको इसी बात की चिंता होने लगी कि कालिंदी के चलते, और इन जैसे लोगों के चलते , पूरा अरण्य ही संकट में आया! अब इतने बड़े सम्पद का क्या होगा ? कौन इन पशु पक्षियों कि रक्षा करेगा ! ऐसे अबला जीव के लिए भी हमें प्रार्थना करनी चाहिए।

पूरे बस में सिर्फ इसी बात की चर्चा चलने लगी कि अब तो सरकार ही दांव पर है।  किसी को किसी कि परवाह ही नहीं ! जिधर देखो कानून की धज्जियाँ ही उड़ाई जा रही है।  हमें तो इन नेता मंत्री लोगों को भी देश निकाला देना चाहिए।  अब अगर ठगों की तलाशी शुरू करें तो फिर पूरा गाँव ही खाली हो जाएगा। 

नाग देवता निकले इसी लिए बवाल मची समझें।  जिन महाशय के झोले में कछुआ था उन्हें भी पकड़े जाने की पीड़ा सताने लगी।  उनका झोला भी बीच बीच में पलटी खा रहा था।  उस शांतिकामी महाशय के उधम पट्टी से अन्य सभी महानुभव बेखबर ही रहे।

  सवारी वर्ग में कुछ आदिम जनजाति के लोग भी थे जिन्हें स्थानीय किसी पड़ाव तक आना था।  काठ का व्यापार करनेवाले नंदी महाशय को शहर तक आना था।  उनकी सज्जनता भी देखने लायक थी।  आजकल पढ़े लिखों में उनकी गिनती की जाने लगी, अपने पास अंग्रेजी में लिखा एक पैगाम को घुमा फिराकर देखने लगे; कहाँ से भाषांतर किया जा सके उसकी तलाशी भी करने लगे ; आखिर उन्हें विदेशी भाषा की समझ थी ही नहीं।  इस कमी के लिए भी वो सरकार बहादुर को ही दोषी मानते हैं: जब उनके लिए विद्यालय का दिन था तब सरकार ने विद्यालय के प्राथमिक वर्ग से अंग्रेजी हटा दिया था; उनकी अंग्रेजी पढ़ाई हुई ही नहीं! भला अंग्रेजी हटाए जाने से अन्य सभी मित्रों की पड़ाई तो नहीं रुकी! सिर्फ उनकी पढ़ाई और उन जैसे शायद कुछ और प्रपंचकों की पढ़ाई रुकी होगी! बात है भी बड़ी निराली; पैर; बिना अंग्रेजी पढ़े ही इतने लम्बे हाथ पैर फिर तो अंग्रेजियत की छत्रछाया में हाथ पैर फिरंगियों तक चले जाय करते होंगे ! अब किसी एक अनुमान के आधार पर अन्य किसी बात का अनुमान लगा लेने से सिर्फ संघर्ष का ही बीजक पनपेगा ! उनकी भी गुस्सैल नजर कालिंदी पर थी।  अब वो खुद करोड़ों का काठ भले ही तस्करी कर देते हों , वो एक अलग बात रही; उनके हाथ और पैर आला कमान तक तो जरूर चले जाया करते होंगे, पेटियां भी बड़ी होती होगी !   

कालिंदी को बीच में ही उतरने के लिए मजबूर कर दिया गया ; उसके पैसे भी खलाशी महोदय ने वापस दे दिए  और उसे किसी दूसरी गाड़ी से आने के लिए कह दिया गया। वहां से दूसरी गाड़ी तुरंत में मिली होगी या नहीं इस बारे में अब भला कौन चर्चा करे! चर्चा करने वाले सबके सब महानुभव अपनी चाल चल दिए, नाग देवता जगह का सर्वेक्षण करने लगे और बिल आदि की तलाशी में जुटे; कालिंदी सर पर हाथ रखकर थोड़ी देर के लिए  रस्ते के किनारे ही बैठा रहा।  सूरज भी कुछ देर में ढलने ही वाला था, पश्चिम का आसमान था ही रंगीला।

-- चन्दन सेनगुप्ता 

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  चन्दन सुकुमार सेनगुप्ता अपने    दैनिक    जीवन    में कुछ हादसे ऐसे भी होते हैं जो पूरी व्यवस्था और न्याय तंत्र पर ही एक...