जगदीश्वर


इतना तो
  तय हो ही गया होगा कि किसी भी ग्रह नक्षत्र मंडल को अनंत अनंत काल के लिए अस्तित्व में नहीं रखा जाएगा; कभी न कभी अपने भरे पूरे संसार को लेकर समग्र नक्षत्र मंडल को विनाशलीला से गुजरना होगा  और फिर नए सृजन के चक्र की और जाना होगा।  सूर्य और सूर्य के साथ जुड़े धरती के अधीन बने विश्व चराचर जगत के बारे में भी यही सत्य है।  कब और कैसे उस प्रलय का सामना करना होगा इसे बताने के लिए शायद ही कोई मनुष्य अस्तित्व में बने रह पायेगा! यही भवितव्य है, और इस भवितव्य को ब्रह्म ज्ञान करके त्याग की भावना से विश्व चराचर जगत में सुख भोगना होगा। ज्ञान विज्ञान की अपनी सीमा रहती होगी और दर्शन के अपने पैमाने रहते होंगे; धर्म को सिर्फ एक पगडंडी जैसा ही समझना होगा; एकमात्र अध्यात्म का परिमंडल ही सबसे व्यापक बना रहेगा जिसके आधार पर अक्षर ब्रह्म के सही स्वरुप को समझने का प्रयास ठीक से हो पायेगा।  उसी प्रकार के समझ को आधार मानकर विश्व चराचर जगत में मानव से मानव को जोड़ा जाना संभव है; उस महासम्मेलन के जरिये ही जगत का कल्याण संभव; अन्य किसी संकीर्ण  मार्ग से उस ध्येय को शायद ही फलीभूत किया जा सके!

..........चन्दन सुकुमार सेनगुप्ता (विभूति योग शीर्षक पुस्तक से ; प्रथम प्रकाश जनवरी २०२५ )

बरगद का पेड़

एकबार ठाकुर रामकृष्ण को निर्विकल्प समाधि लेते हुए नरेन छिपकर देख रहे थे | बाद में नरेन काफ़ी आग्रह करने लगे कि उन्हें भी ठाकुर से निर्विकल्प...