अगला पड़ाव

 


काफी अवधि के बाद फिर से उस पवित्र भूमि पर बैठकर पवित्र जीवन के बारे में संतों से सुनने का मौका मिला।  वह माहौल ही अनोखा  था जब मैं आचार्य विनोबा को उन संतों के बीच प्रत्यक्ष रूप से मूर्त होता हुआ देख रहा था और यह भी महसूस कर रहा था कि मुझे भी कुछ ठोस कदम उठाते हुए ज्ञान गंगा के पवित्र सरोवर में संतरण करने के कार्यक्रम को नित्य नैमित्यिक अनुक्रिया बना लेना चाहिए।  तत्व को आधार मानकर उसकी गहराई में उतर जाने के लिए कई दिव्य जनों को प्रयत्न करते हुए देखकर भी मन , बुद्धि और चित्त को एक समाधान मिलता है और हम शाश्वत मार्ग ार चल पड़ने के लिए कुछ साहस जूता पाते हैं। इसे एक प्रात्यक्षिक भी समझा जाना चाहिए जिसके जरिये हमें अपने सामुदायिक जीवन के अगले  पड़ाव के बारे में अपनी समझ बनाने की जरुरत महसूस हो रही है। 

यह तो स्वाभाविक ही है कि कुछ लोग पैसों के लिए काम करेंगे और अन्य कुछ लोग प्रतिष्ठा के लिए; उन दोनों समूहों से अलग हटकर कुछ ऐसे भी दिव्य जन  होंगे जन्हें न तो पैसों का प्यास रहेगा और न ही प्रतिष्ठा कि भूख।  उन्हें सार्विक समाधान के अनुसंधान के निमित्त से दिव्य पथ पर चलना होगा ; इसी में वो अपने जीवन का समाधान मानेंगे और तीसरी शक्ति का हिस्सा बन जाना पसंद करेंगे।  उस तीसरी शक्ति की बिरादरी भी बड़ी होनेवाली है। 

इस सफर को स्वार्थ से परमार्थ की ओर किया जानेवाला सफर समझा जाना चाहिए; इसे कुछ और स्पष्टता से समझने के लिए हम यह भी प्रत्यक्ष कर पाएंगे कि हमारा जीवन निसर्ग के अधीन है; उसकी कुछ सीमाएं भी निर्धारित कर दिए गए हैं, उस सीमा में ही हमें बने रहना होगा; उस सीमा से हटकर हम ग्रहों और नक्षत्रों तक का सफर नहीं कर पाएंगे; उसी प्रकार धरती कीसीमा सूर्य के परिमंडल तक; सूर्य की सीमा ब्रम्हांड के परिमंडल तक; ब्रम्हांड की सीमा ऊर्जा और अदारथ के बेच के समन्वय तक; ऊर्जा और पदार्थ के समन्वय सृष्टि और विनाश के चक्र तक सीमित कर दिया गया।  सिर्फ परम सत्ता को ही असीम रखा गया।  उस परम सत्ता को समझ पाने का लिए हमें अपने सीमित पगडंडी से बाहर तो आना होगा ही।  

क्या उस दिव्य जीवन की ओर दिव्य कर्म के जरिये चलने की तमन्ना सभी आम जनों को भी रखना चाहिए, या फिर इसे किसी ख़ास वर्ग तक ही सीमित समझा जाय? यह तो वैसा ही हुआ जैसे छोटी मछलियां सरोवर में ही रहे और सिर्फ बड़ी मछलियों को समुद्र में उतरकर गोते खाने का सपना देखना चाहिए; पर हकिअक्त में विस्तीर्ण जलराशि का साम्राज्य सबके लिए सामान रूप से सुगम बना दिया गया।  यह नैसर्गिक होने के साथ साथ शाश्वत मार्ग का द्योतक भी समझा जाएगा।  

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