आज मैं एक
छोटे गाँव से हो आया
| उस गाँव में ५० एकड़ ज़मीन
एक श्रीमान भाई से ग़रीबों को
दिलवाई | लोग कहेंगे कि पाँच पाँच
हज़ार एकड़ वाला सौ एकड़ ज़मीन
दे देता है, तो उससे क्या
होगा? ज़रा सब्र रखो; अभी अभी पाँच हज़ार में से सौ देता
है, वह प्रेम से
देता है तो मैं
लूँगा और बाकी के
चार हज़ार नौ सौ एकड़
भी मेरे ही हैं | जब
ये लोग देखेंगे कि हम ग़रीबों
को ज़मीन देते जाते हैं, उससे उनका प्रेम ही मिलता है,
तो फिर वे खुद कहेंगे
कि और भी ले
लो |
एकबार थोड़ी भावना और थोड़ा वातावरण
होने दो कि ज़मीन
ग़रीबों को देने में
लाभ है | वातावरण तैयार हो जाने पर
तो क़ानून करा ही लूँगा ; फिर
राह नहीं देखूँगा | बात
यह है कि हवा
बदल जानी चाहिए और हवा बदल
जाती है, तो क़ानून उसके
साथ आता ही है | अगर
मैं वातावरण तैयार कर दूं तो
लोग क़ानून पसंद करेंगे | माँ -बाप बच्चे को मिठाई खिलाते
हैं, तो प्रेम से
और तमाचा लगाते हैं तो भी प्रेम
से | लेकिन कोई लूटने के लिए आते
हैं, वे भी बच्चे
को मिठाई खिलाते हैं, पर वह मिठाई
प्रेम की नहीं होती
| इसी तरह मैं जो ज़मीन लेता
हूँ, वह प्रेम से
लेता हूँ | मुझे आश्चर्य लगता है कि मैं
जहाँ जाता हूँ, लोग ज़मीन देने के लिए क्यों
तैयार होते हैं | सोचता हूँ की क्या यह
गाँधीजी की करामात है
? लोग जब जानते हैं
कि यह कंधी जी
का मनुष्य है, तो प्रेम से
देने के लिए तैयार
हो जाते हैं | गाँधीजी की करामात है,
लेकिन परमेश्वर की भी करामात
है | परमेश्वर की महिमा है
कि लोग यह जानने लगे
कि इतनी सारी ज़मीन अपने हाथ में रखकर कोई ले जानेवाला नहीं
है | आख़िर इतनी ज़मीन को वे खुद
भी तो नहीं जोत
सकते | इतनी ज़मीन अपने हाथ में रखने से कोई लाभ
नहीं, यह बात उनके
ध्यान में आ गयी | इसीलिए
आज मैं वामनावतार बन गया और
ज़मीन माँग रहा हूँ; तीन कदम दोगे तो भी बहुत
है | वैसे वामन के तीन कदम
में सारा त्रिभुवन आ गया | अगर
यह सारी खूबी ग़रीब लोग समझेंगे, तो सारा गाँव
सुखी होगा |
हमारा काम सिर्फ़ क़ानून से नहीं होगा
| इसका आरंभ होता है दान से और समाप्ति होती है क़ानून से | आख़िर क़ानून से समाप्ति
अन्य लोग भी करेंगे , और मैं भी ; पर इस काम के आरंभ में मैं दान और प्रेम चाहता हूँ |
वविलापल्ली
२१-४-१९५१
ज़मीन तो आधार है
और हरएक को वह आधार
मिलनी चाहिए, लेकिन उससे कोई श्रीमंत बनेगा वैसी आशा नहीं करनी चाहिए | हवा और पानी सबको
चाहिए, लेकिन हवा और पानी से
हम संपत्ति नहीं नापते | जिंदा रहने के लिए भूमि
आधार है , लेकिन श्रीमंत बनने के लिए उद्योग
ही आधार है | गाँव की उन्नति करनी
है तो गाँव के
उद्योग बढ़ने चाहिए | आजकल लोगों का यह ख़याल
हो गया है कि सबको
अगर ज़मीन मिल जाय तो मामला हाल
हो गया समझो ; सब सुखी हो
जाएँ | पर हक़ीकत में
यह ग़लत ख़याल है | ज़मीन
की तक्सीम अवश्य होनी चाहिए, पर इतने भर
से देश सुखी नहीं होगा |
नीरेगुड़ेम
(२८-४-१९५१)
समझने
की बात यह है कि सारा
गाँव एक परिवार है|
जैसे बारिश का पानी और
सूर्य प्रकाश सबके लिए है वैसे सारा
गाँव सबका होना चाहिए | सब गाँववालों को
एक हो जाना चाहिए
और समझना चाहिए कि सारी ज़मीन
सबकी है | सिर्फ़ भूमि ही नहीं अपने
पास जो भी संपत्ति
है सबके सब गाँववालों की
है |
पेद्दमूंगल
[२९-४-१९५१]