आज की शाखा और स्वाध्याय


आज सुबह पांचजन्य  की और जाने के निमित्त से घर से निकला; यह वही स्थान है जहां नित्य सुबह की शाखा लगा कराती है और अपने साथी मित्र वर्ग जमा होते हैं; चर्चा करते हैं, शरीर चर्चा करते हैं; संवाद का विनिमय भी होता है।  अपने कुछ वरिष्ठ सदस्य भी वहां आये और अनुभव कथन में भाग लेकर स्वधाय वर्ग को आगे बढ़ाने लगे। 

मुख्य रूप से मौजूदा परिस्थिति और सुबह की ख़बरों पर ही लोगों की नजर पड़ी।  आये दिन भ्रष्टाचार विषयक संवाद से ही अखबार का हर पन्ना भरा रहता है।  कितना भी उस परिस्थिति से मुंह मदकार धर्म, नीति और मानविकता पर चर्चा करना चाहें फिर भी भ्रष्टाचार से सम्बंधित संवाद पर नजर पर ही जाती है।  यह एक ऐसा विषय है जो सरकार के समग्र तंत्र को पूरी तरह हिलाकर रख दिया है।  एक अध्ययन से यह स्पष्ट हो रहा है कि भारत में करीब ६२% लोग किसी किसी रूप में भ्रष्टाचार को या तू बढ़ावा दिया या फिर उस व्यवस्था से लाभ उठाया; सिर्फ इतना ही नहीं प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भारत कि अर्थनीति को नुकसान पहुंचाया।

चर्चा काफी देर तक चली और श्री रामचरित मानस से कुछ अंश का पाठ भी हुआ। 

गोसामी तुलसीदास कि काव्य पप्रतिभा पर प्रकाश डालते हुए यह विचार रखा गया कि "श्री रामचरितमानस " हर प्रकार से सम्पूर्ण ग्रन्थ है, इसमें हर प्रकार से प्रत्येक शंका को प्रशमित करने की शक्ति है।

कहते हैं गोस्वामी तुलसीदास जी जब काशी के विख्यात् घाट असीघाट पर रहने लगे तो एक रात कलियुग मूर्त रूप धारण कर उनके पास आया और उन्हें पीड़ा पहुँचाने लगा। गोस्वामीजी  जी ने उसी समय हनुमान जी का ध्यान किया। श्री बजरंगबली ने उन्हें प्रार्थना के पद रचने को कहा, इसके पश्चात् उन्होंने अपनी अन्तिम कृति विनय-पत्रिका लिखी; इस रचना से कविवर काफी संतोषी रहे।  संवत् 1680 में श्रावण कृष्ण सप्तमी शनिवार को तुलसीदास जी ने "राम-राम" कहते हुए अपना शरीर त्याग कर दिए;  तुलसीदास के बारे में प्रचलित पद -

संवत सोलह सौ असी ,असी गंग के तीर

श्रावण शुक्ला सप्तमी ,तुलसी तज्यो शरीर ।।

 

 

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